दुनियाभर में अध्यात्म और आस्था के लिए प्रसिद्ध राज्य उत्तराखंड की अपनी एक अलग ही पहचान है।
देवी काली को समर्पित यह मंदिर इस क्षेत्र में बहुत पूजनीय है। धारी देवी (Dhari Devi Uttarakhand) को उत्तराखंड की संरक्षक व पालक देवी के रूप में माना जाता है । धारी देवी का पवित्र मंदिर बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है । लोगों का मानना है कि यहाँ धारी माता की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं पहले एक लड़की फिर महिला और अंत में बूढ़ी महिला । एक पौराणिक कथन के अनुसार कि एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी। गांव वालों को मूर्ति से विलाप की आवाज सुनाई दी और पवित्र आवाज़ ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया। मूर्ति का निचला आधा हिस्सा कालीमठ में स्थित है, जिनकी माता काली के रूप में अराधना की जाती है। माँ धारी देवी जनकल्याणकारी होने के साथ ही उन्हें दक्षिणी काली माँ भी कहा जाता है। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। माँ धारी देवी को चार धामों के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। श्रद्धालुओं के अनुसार जब देवी की मूर्ति को उनके स्थान से हटा दिया गया था तो कुछ ही घंटो बाद उस क्षेत्र में बहुत बड़ा बादल फटा । उस समय उस क्षेत्र को देवी के क्रोध का सामना करना पड़ा क्यूंकि देवी को 330 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना के लिए रास्ता बनाने के लिए उनके मूल स्थान से स्थानांतरित किया गया था। बहुत पूरानी बात है जब एक स्थानीय राजा ने भी 1882 में धारी देवी को मूल स्थान से हटाने की कोशिश की थी , तब भी केदारनाथ में बहुत ही त्रासदी हुई थी। मंदिर में माँ धारी की पूजा-अर्चना धारी गाँव के पंडितों द्वारा किया जाता है। यहाँ के तीन भाई पंडितों द्वारा चार-चार माह पूजा अर्चना की जाती है । मंदिर में स्थित प्रतिमाएँ साक्षात व जाग्रत के साथ ही पौराणिककाल से ही विराजमान है । धारी देवी मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पूरे वर्ष मां के दर्शन के लिए आते हैं । हर साल नवरात्रों के अवसर पर देवी कालीसौर की विशेष पूजा की जाती है। धारी देवी मंदिर में मनाए जाने वाले कई त्योहार है , जिनमें दुर्गा पूजा व नवरात्री की विशेष पूजा मंदिर में आयोजित की जाती है। यह त्यौहार धारी देवी मंदिर के बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार हैं । मंदिर में हर वर्ष चैत्र व शारदीय नवरात्री में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं के लिए दूर-दूर से आते हैं । मंदिर में सबसे ज्यादा नवविवाहित जोड़े अपनी मनोकामनाओं की इच्छा रखने हेतु माँ का आशीर्वाद लेने आते हैं। मंदिर के पास एक प्राचीन गुफा भी स्थित है। यह मंदिर दिल्ली-राष्ट्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग 55 पर श्रीनगर से 15 किमी दूर है ।अलकनंदा नदी के किनारे पर मंदिर के पास तक 1 किमी-सीमेंट मार्ग जाता है।
उत्तराखंड की रक्षक देवी दिनभर के दौरान बदलती रहती है अपना रूप ..धारी देवी
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