छात्रवृत्ति की बदौलत जीवन में कुछ कर गुजरने का सपना देखने वाले गरीब बच्चों का सिस्टम पर भरोसा कमजोर पड़ गया है। इसका कारण छात्रवृत्ति घोटाला है जिसने गरीब बच्चों के सपनो को तोड़ा है। यही कारण है कि सरकार को जब इस घोटाले का पता चला तो शिकंजा कसने में देर नहीं लगाई। करीब पांच सौ करोड़ रुपये के इस घोटाले में अब तक सौ से अधिक आरोपित जेल की हवा खा चुके हैं।
उत्तराखंड के सबसे चर्चित घोटाले की समाज कल्याण विभाग में धांधली यूं तो राज्य बनने के बाद से ही हो रही थी, लेकिन इसने संगठित लूट का स्वरूप वर्ष 2011 के बाद लिया। इस दौरान कॉलेजों के खातों में बिना वैरिफिकेशन के करोड़ों रुपये की छात्रवृत्ति जमा कराई गई। इनमें से ज्यादातर कॉलेज नेताओं के सगे संबंधियों के ही रहे। खास बात यह थी कि तब से लेकर 2017 में मामला कोर्ट में पहुंचने तक किसी ने भी इस लूट पर अपनी तरफ से अंकुश लगाने का प्रयास नहीं किया। अलबत्ता वह चहेतों अफसरों को अभयदान देने की राह तलाशते रहे।
साल 2018 में मामला सरकार के संज्ञान में आया तो, इसकी जांच के समिति गठित की गई। पहले तो इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में खारिज कर दिया कि कोई घोटाला हुआ है। तत्कालीन सचिव डॉ. भूपिंदर कौर औलख ने जांच समिति की रिपोर्ट खारिज कर तत्कालीन अपर सचिव डॉ. वी. षणमुगम की अध्यक्षता में नई जांच समिति गठित की। इस समिति की जांच में घोटाले की पुष्टि हुई। समिति की रिपोर्ट पर तत्कालीन अपर सचिव मनोज चंद्रन ने घोटाले की सीबीआइ या सतर्कता जांच के साथ, घोटाले की शिकायत को निराधार बताने वाली समिति के सदस्यों के निलंबन और उनके खिलाफ विधिक कार्रवाई करने की सिफारिश तक कर दी। इसके बाद मामला हाईकोर्ट पहुंच गया और जांच के लिए दो अलग अलग एसआईटी का गठन कर दिया गया।