पहाड़ों की रानी मसूरी में अंग्रेजी शासन काल के दौरान स्थापित दो डाकघर जल्द इतिहास बन जाएंगे। भारतीय डाक विभाग इन्हें बंद करने की तैयारी में है। इनमें से लंढौर स्थित डाकघर का जिक्र तो प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक रस्किन बांड की कहानियों में भी हुआ है। रस्किन कहते हैं कि एक दौर में ये डाकघर मसूरीवासियों के लिए देश-दुनिया से संपर्क का एकमात्र जरिया हुआ करते थे। आज भी ये मसूरी और आसपास रहने वालों की भावनाओं से जुड़े हुए हैं।
मसूरी में लंढौर और सेवाय स्थित डाकघर करीब 125 साल से स्थानीय निवासियों को सेवाएं देते आ रहे हैं। ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने इन्हें अपनी सुविधा के लिए शुरू किया था। देश आजाद होने के बाद शहरों से मनीऑर्डर प्राप्त करने और भेजने का यह एकमात्र माध्यम रहे हैं। आज भी ये डाकघर स्थानीय निवासियों को पार्सल, रजिस्ट्री, स्पीड पोस्ट व बैंकिंग सुविधा मुहैया करा रहे हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि इन डाकघरों को बंद किया जाना उनकी भावनाओं को आहत करने जैसा है।
1837 में हुई थी लंढौर डाकघर की स्थापना
लंढौर में डाकघर की स्थापना मसूरी के संस्थापक कैप्टन फ्रेडरिक यंग ने की थी। शिक्षाविद एवं लेखक गणेश शैली बताते हैं कि मसूरी के सबसे पुराने लंढौर बाजार के मध्य बावड़ी के पास इस डाकघर की स्थापना वर्ष 1837 में हुई थी। अंग्रेजों ने लंढौर को सैनिक छावनी के रूप में स्थापित किया था। यहां ब्रिटिश आर्मी के अधिकारी भी रहते थे, सो उनकी सुविधा के लिए ही यहां डाकघर खोला गया। लंढौर डाकघर ने बतौर मुख्य डाकघर वर्ष 1909 तक सेवाएं दी। इसके बाद मध्य कुलड़ी में नया मुख्य डाकघर बन गया। गणेश शैली बताते हैं कि प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट के पिता क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट ने इस डाकघर में बतौर पोस्ट मास्टर 1850 से 1863 तक सेवाएं दी थी।
सेवाय होटल परिसर में 118 साल पुराना डाकघर
मसूरी के लाइब्रेरी बाजार स्थित सेवाय होटल परिसर में भी वर्ष 1902 में डाकघर खोला गया था। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि यह ऐतिहासिक डाकघर विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र रहा है। सेवाय होटल देश के सबसे पुराने होटलों में से एक है और इसका इतिहास भी बेहद दिलचस्प है। लेखक गणेश शैली बताते हैं कि सेवाय होटल डाकघर का किराया उस दौर में 99 रुपये प्रतिवर्ष निर्धारित था, जो आज भी यथावत है। यहां पर प्रयोग की जाने वाली मोहर में आज भी सेवाय मसूरी लिखा हुआ है।
लंढौर डाकघर से जुड़ी हैं रस्किन की यादें
लंढौर छावनी एरिया निवासी अंग्रेेजी के प्रसिद्ध बाल लेखक एवं कहानीकार रस्किन बांड बताते हैं कि वे वर्ष 1964 से लगातार लंढौर डाकघर की सेवाएं ले रहे हैं। अपनी कहानियों में भी उन्होंने इस डाकघर से घर पर डाक पहुंचाने वाले डाकिये का जिक्र किया है। रस्किन के अनुसार पूर्व में यह डाकघर ही हमारे देश-दुनिया से संपर्क का एकमात्र जरिया रहा है।