भारत के राजनीतिक इतिहास में अटल बिहारी बाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रुप में विख़्यात है। दुनिया में उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रुप में है। संघी विचारधारा में पले- बढ़े अटलजी ने खुद को कभी बड़ा नहीँ समझा। वे राजनीति में उदारवाद एवं समता- समानता के सबसे बड़े समर्थक माने जाते हैं। उन्होंने जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार किया। अटल बिहारी बाजपेयी राजनीति में कभी भी आक्रमकता के पोषक नहीं थे। वैचारिकता को उन्होंने हमेंशा तवज्जों दिया।
राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को संयमित और तटस्थ रखा। राजनीति में धुर विरोधी भी उनकी विचारधाराओं और कार्यशैली के कायल थे।लेकिन पोखरण जैसा आणविक परीक्षण कर तीसरी दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे मुल्कों को भारत की शक्ति का एहसास कराया। भाजपा सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। संघ के संस्थापक सदस्यों में एक अटल ने 1951 में संघ की स्थापना की थी।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ था।उनके पिता कृष्ण बिहारी बाजपेयी शिक्षक थे। उनकी माता कृष्णा जी थी। वैसे वे मूलतः उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव के रहने वाले थे। लेकिन पिताजी मध्य प्रदेश में शिक्षक थे इसलिए उनका जन्म वहीं हुआ। उनकी मृत्यु 16 अगस्त 2018 को नई दिल्ली स्थित एम्स में हुई। उत्तर प्रदेश से उनका राजनीतिक लगाव सबसे अधिक रहा। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वे सांसद थे। उन्हें श्रेष्ठ सांसद और लोकमान्य तिलक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था कि मेरी कविता जंग का एलान है। पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है। उनकी कविताओं का संकलन ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ खूब चर्चित हुई जिसमें..हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा.खास चर्चा में रही। राजनीति में संख्या बल का आंकड़ा सर्वोपरि होने से 1996 में उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई और उन्हें प्रधानमंत्री का पद त्यागना पड़ा। यह सरकार सिर्फ तेरह दिन तक रही। बाद में उन्होंने प्रतिपक्ष की भूमिका निभायी। इसके बाद हुए चुनाव में वे दोबारा प्रधानमंत्री बने। संख्या बल की राजनीति में यह भारतीय इतिहास के लिए सबसे बुरा दिन था। लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी बिचलित नहीं हुए उन्होंने इसका मुकाबला किया। 16 मई से 01 जून 1996 और 19 मार्च से 22 मई 2004 तक वे भारत के प्रधानमंत्री रहे। 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष रहे।
राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वे आजीवन कुंवारे रहे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित करने का निर्णय लिया था। अटल बिहारी बाजपेयी गैर कांग्रेसी सरकार के इतर पहले प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता से भाजपा को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया। दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने राजग बनाया। जिसमें 80 से अधिक मंत्री थे, जिसे जम्बू मंत्रीमंडल भी कहा गया। सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। उन्हीं अटलजी की देन है कि आज़ भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार का नेतृत्व कर रही है। राजनीति के शिखर पुरुष अटलजी मानते हैं कि राजनीति उनके मन का पहला विषय नहीं था। राजनीति से उन्हें कभी-कभी तृष्णा होती थी। लेकिन वे चाहकर भी इससे पलायित नहीं हो सकते थे। क्योंकि विपक्ष उन पर पलायन का मोहर लगा देता। वे अपने राजनैतिक दायित्वों का डट कर मुकाबला करना चाहते थे। यह उनके जीवन संघर्ष की भी खूबी रही। वे एक कुशल कवि के रुप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे।
अटल ने अपने कार्यशील जीवन की शुरुवात पत्रकारिता से की थी । पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत पत्रकारिता से की। संयुक्तराष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले अटलजी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे। हिन्दी को सम्मानित करने का काम विदेश की धरती पर अटल ने कियाा। उन्होंने सबसे पहले 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रुप में जीत कर लोकसभा पहुंचे। अटल जी ने बीस सालों तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रुप में काम किया। इंदिरा गांधी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश में मोरारजी देशाई की सरकार बनी तो अटल जी को भारत का विदेशमंत्री बनाया गया। इस दौरान उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी और विदेश नीति को बुलंदियों पर पहुंचाया। बाद में 1980 में वे जनतापार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी। इसके बाद 1986 तक उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद का कुशल नेतृत्व किया। अटल हमेंशा से समाज में समानता के पोषक थे। विदेश नीति पर उनका नजरिया साफ था। वह आर्थिक उदारीकरण एंव विदेशी मदद के विरोधी नहीं थे। लेकिन वह इमदाद देशहित के खिलाफ हो ऐसी नीति को बढ़ावा देने के वह हिमायती नहीं रहे।
पूर्व प्रधानमंत्री अटलजी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री रहे लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय ‘जवान जय किसान’ के नारे में अलग से ‘जय विज्ञान’ भी जोड़ा। देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवांरा नहीं था। उन्होंने कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डट कर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धुल चटायी। दक्षिण भारत के सालों पुराने कावेरी जल विवाद का हल निकाला। इसके बाद स्वर्णिम चर्तुभुज योजना से देश को राजमार्ग से जोड़ने के लिए कारिडोर बनाया। मुख्य मार्ग से गांवों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना बेहतर विकास का विकल्प लेकर सामने आयी। कोंकण रेल सेवा की आधारशिला उन्हीं के काल में की गई थी. भारतीय राजनीति में अटल बिहारी बाजपेयी एक अडिग, अटल और लौह स्तभं के रुप में आने वाली पीढ़ी को सिख देते रहेंगे। हमें उनकी नीतियों और विचारधराओं का उपयोग देशहित में करना चाहिए। वेे एक कुशल व्यक़्तित्व वाले महान व्यक्ति रहे।