आपदा बचाव कार्यों से लेकर पर्यावरण संरक्षण तक में आइटीबीपी के जवान सक्रिय है। गर्मी, बारिश और भीषण ठंड में वह न केवल चीन सीमा की निगरानी करते हैं बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा में भी उनका अहम रोल रहा है। यही नहीं वह कभी बर्फबारी-जाम में फंसे पर्यटकों के मददगार बनते हैं, कभी किसी मरीज को कंधे पर अस्पताल पहुंचाते हैं, तो कभी कई किमी की पैदल दूरी तय कर किसी पोर्टर का शव उसके घर पहुंचाते हैं। यानी वह हर कदम पर मूल्यों और मानवीय परंपराओं की मिसाल पेश करते आए हैं। साथ ही वह अपना मानवीय कर्तव्य भी कभी नहीं भूलते। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं जहां उन्होंने ‘सेवा परमो धर्म’ को चरितार्थ किया है।
शव को कंधे पर उठाकर परिजनों तक पहुंचाया, 8 घंटे तक चले पैदल
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की अग्रिम चौकी बुगदयार के नजदीक सीमांत गांव स्युनी में एक स्थानीय 30 वर्षीय युवक की मृत्यु के बाद शव पड़े होने की सूचना आइटीबीपी की 14 वीं वाहिनी को मिली। भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (ITBP) के जवानों ने युवक के शव को कंधों पर उठाकर 25 किलोमीटर दूर सड़क तक पहुंचाया, इस दौरान जवान 8 घंटे तक पहाड़ के दुर्गम रास्तों को पैदल पार कर मृतक के परिजनों तक पहुंचे।
जान को जोखिम में डाल के घायल महिला को पहुंचाया अस्पताल
पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिलालयी और दुर्गम क्षेत्र लास्पा गाड़ी निवासी रेखा देवी पहाड़ से गिरे पत्थर की चपेट में आने से गंभीर रूप से घायल हो गई थी। चीन सीमा से लगे उच्च हिमालयी इस गांव में घायल महिला के उपचार की कोई व्यवस्था नहीं थी। लास्पा से मुनस्यारी तक का 45 किमी मार्ग भारी बारिश के कारण ध्वस्त हो चुका था। महिला की गंभीर स्थिति को देखते हुए प्रशासन से हेलीकॉप्टर की मांग की गई, पर खराब मौसम के कारण यह मुमकिन नहीं हुआ। ऐसे में ग्रामीणों ने आइटीबीपी के अधिकारियों से अनुरोध किया । जिसपर आइटीबीपी के जवानों ने अपनी जान को जोखिम में डालते हुए टूटे फृटे दुर्गम मार्ग से महिला को मुनस्यारी मार्ग तक पहुंचाया। जहां से महिला को जिला अस्पताल ले जाया गया।
बर्फबारी-जाम में फंसे 500 पर्यटकों के बने मददगार
इसी साल जनवरी माह में आइटीबीपी मसूरी में बर्फबारी-जाम में फंसे पर्यटकों की मदद को आगे आई। जगह-जगह सड़कों पर लगे जाम में फंसे 500 पर्यटकों को प्रशासन ने आइटीबीपी की मदद से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। जाम की स्थिति इतनी भयंकर थी कि पर्यटकों को सड़कों पर ही खाने पीने की वस्तुएं वितरित करनी पड़ी। किसी तरह जेसीबी आदि की मदद से सड़कों से बर्फ हटाई गई। पर्यटकों को सुआखोली, बुरांस खंडा आदि सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया।
असंभव को कर दिखाया संभव
साल 2019, जुलाई माह में ही हिमवीरों ने एक बार फिर असंभव को संभव कर दिखाया। मलारी राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुई कार दुर्घटना में आइटीबीपी ने सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के साथ मिलकर करीब 31 घंटे बाद खाई से शव निकालने में सफलता पाई। इसके लिए रेस्क्यू टीम को कई बार रणनीति बदलनी पड़ी। गरारी सिस्टम से सिर्फ 200 फीट डेंजर जोन में ही रस्सियों के सहारे रेस्क्यू किया गया। आधा किमी पैदल शवों को स्ट्रेचर में पकड़कर सड़क तक पहुंचाया। यह इसलिए कि चट्टान में लंबी रस्सी की हलचल के दौरान पहाड़ी से लगातार पत्थर गिर रहे थे, जो कि खाई में खड़े रेस्क्यू टीम के सदस्यों के लिए हर वक्त खतरे से कम नहीं था।