उत्तराखंड के वन-
- उत्तराखंड राज्य में वन का कुल क्षेत्रफल 37999.60 वर्ग किलोमीटर है।
- उत्तराखंड राज्य के वन का कुल क्षेत्रफल का 71.05 % है।
- उत्तराखंड राज्य में वन विभाग के अधीन 25,863.18 वर्ग किमी. है।
- उत्तराखंड राज्य में वन पंचायतों के अधीन 12,089 वर्ग किमी. है।
उत्तराखंड के वनों को 3 भागो में बाँटा गया हैं-
- आरक्षित वन (Reserved forests) – 24,65 वर्ग किमी. ,जो की 49.63 % है।
- अवर्गीकृत वन (Unclassified forest) – 917 वर्ग किमी. ,जो की 2.93 % है।
- संरक्षित वन (Protected Forests) – 614 वर्ग किमी. , जो की 18.48 % है।
- राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy) 1998 के अनुसार देश के क्षेत्रफल का 33% भाग पर वन होने आवश्यक है।
- पर्वतीय क्षेत्र में कम से कम 60% वन होने आवश्यक है।
- मैदानी क्षेत्रों में कम से कम 25% वन होने आवश्यक है।
- उत्तराखंड में सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला जिला पौड़ी गढ़वाल है।
- उत्तराखंड में सबसे कम वन क्षेत्र वाला जिला उधम सिंह नगर है।
- नैनीताल क्षेत्र में उत्तराखंड में सबसे अधिक सघन वन है।
- पौड़ी उत्तराखंड का मध्यम सघन वन वाला क्षेत्र है।
- पौड़ी जनपद में उत्तराखंड के सर्वाधिक खुले वन है।
- उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल मण्डल में कुल वनों का 59.70% है।
- उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं मण्डल में कुल वनों का 40.30 % है।
उत्तराखंड के वनों के प्रकार-
1. टुण्ड्रा तुल्य वनस्पति-
- टुंड्रा तुल्य वनस्पति 3600- 4800 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
- इस क्षेत्र से अधिक ऊंचाई का भाग सदैव बर्फ से ढका रहता हैं।
2. घास के मैदान (बुग्याल )-
- 3800 से 4200 मीटर की ऊंचाई पर मध्य हिमालय में घास के मैदान पाये जाते है।
- ये मुलायम घास के मैदान होते है जिन्हें बुग्याल कहा जाता है।
- इन वनों में मुख्य जुनिपर, विलो, रिब्स आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
3. उप एल्पाइन तथा एल्पाइन वन –
- यह वन 2700 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाए जाते है।
- इनकी मुख्य प्रजातियाँ सिलवर फर, ब्लू पाइन, स्प्रूस, देवदार, बर्च व बुराँस है।
4. पर्वतीय शीतोष्ण वन-
- यह वन 1800-2700 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते है।
- इनके मुख्य वृक्ष चीड़, देवदार, स्प्रूस,बाज, मोरू,खुर्स ,फर आदि है।
5. कोणधारी वन-
- यह वन 900-1800 मीटर ऊंचाई पर पाये जाते है।
- इनका मुख्य वृक्ष चीड़ है।
6. उष्ण कटिबन्धीय आद्र पतझड़ वन-
- यह वन दून क्षेत्रो तथा शिवालिक क्षेत्रो में पाये जाते है।
- इन्हें मानसूनी वन भी कहा जाता है।
- सागौन, शहतूत, पलाश, अंजन, बहेड़ा, बांस और साल आदि इन वनों की मुख्य प्रजातियाँ है।
7.उष्ण कटिबन्धीय शुष्क वन-
- जहा वर्षा कम होती है वहां ये वन पाए जाते है।
- यह वन 1500 मीटर ऊंचाई से कम वाले क्षेत्रो में पाये जाते है।
- ढ़ाक, सेमल, गुलर, जामुन व बेर आदि इन वनों की मुख्य वृक्ष है।
8. उपोष्ण कटिबन्धीय वन-
- उत्तराखंड का उप हिमालय क्षेत्र में यह वन पाए जाते है।
- यह वन 750 से 1200 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाते है।
- इन वनों का प्रमुख वृक्ष कन्जू, सेमल, हल्दू, खैर, सीसु तथा बांस है।
उत्तराखंड के वन आच्छादित क्षेत्र-
उत्तराखण्ड वन बहुल राज्य है एवं इसके कुल भौगौलिक क्षेत्रफल का 65 प्रतिशत भाग वन भूमि है। प्रदेश का लगभग 45 प्रतिशत भाग पेड़ों से आच्छादित है। भारत के अधिकतम राज्यों में वन भूमि व वृक्षाच्छादित क्षेत्रफल का प्रतिशत इससे कहीं कम है।
उत्तराखंड के वन संबंधी आंदोलन- उत्तराखंड में वन आन्दोलन का एक लंबा इतिहास रहा है। अलग-अलग समय पर यहां के लोगों ने अपने वन अधिकारों के लिये लड़ाई लड़ी है। जानिये उत्तराखंड में हुए कुछ प्रमुख वन आंदोलन।
रंवाई आंदोलन मई 1930
रंवाई आंदोलन उत्तराखंड का ही नहीं वरन भारत का पहला वन आंदोलन है। भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान रंवाई घाटी के लोगों ने अपने वन अधिकारों के गढ़वाल के राजा के विरुद्ध आन्दोलन किया था।
चिपको आंदोलन 1972
चिपको आंदोलन भारत के सबसे बड़े और प्रसिद्ध पर्यावरण आंदोलन में एक है।1972 में चमोली में हुये इस आंदोलन में गौरा देवी के नेतृत्व में स्थानीय महिलाओं ने सरकारी ठेकेदारों का विरोध पेड़ों से चिपक कर किया था।
वनों की नीलामी के विरोध में आंदोलन 1977
1977 में नैनीताल जिले में शुरु हुआ यह एक राज्य स्तरीय आंदोलन था। वनों की नीलामी के विरोध में नैनीताल में आन्दोलनकारियों ने शैले हॉल फूक दिया। आंदोलन के दौरान दौराहाट के लोगों ने ढ़ोल और नगाड़े के साथ वनों का कटान रुकवा दिया।
डूंगी पैंतोली का आंदोलन
डूंगी पैंतोली का आंदोलन का आंदोलन चमोली जिले में बांज की कटाई के विरोध में हुआ। सरकार द्वारा बांज के जंगलों को उद्यान विभाग को सौंप दिया जिसके विरोध में स्थानीय लोगों ने यह आंदोलन प्रारंभ किया था।
पांणी राखो आंदोलन
80 के दशक में डूंगी पैंतोली का आंदोलन की नींव पौढ़ी गढ़वाल के उफरैला गाँव में पड़ी। सच्दाचिदानंद भारती के नेतृत्व में शुरू हुए इस आंदोलन में स्थानीय युवाओं, महिलाओं और बच्चों ने पानी की कमी की दूर किया था।
रक्षासूत्र आंदोलन
1994 में शुरू रक्षासूत्र आंदोलन में टिहरी के भिलंगना घाटी के लोगों ने वृक्षों पर रक्षासूत्र बांधकर वृक्षों को बचाने का संकल्प लिया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2500 पेड़ों को काटने हेतु चिन्हित किया था। सरकार इससे पहले कि पेड़ों का कटान शुरू करती स्थानीय माहिलाओं ने आंदोलन शुरू कर दिया।
झपटो छिनो आंदोलन
1998 में शुरू इस आंदोलन में नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क बनने के बाद स्थानीय लोगों के वनों पर सभी अधिकार छिन गये। रैणी, लाता, तोलमा आदि गाव के लोगों ने नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क का प्रबंधन स्थानीय लोगों के हाथों देने की मांग की और लाता गांव में विरोध प्रदर्शन किया।
मैती आंदोलन
मैती आंदोलन भारत का एक ऐसा पर्यावरण आंदोलन है जिसने पर्यारण और लोगों के बीच एक भावनात्मक संबंध बनाया है। कल्याण सिंह रावत द्वारा 1995 में इस आंदोलन को प्रारंभ किया था।