कोरोना महामारी के मौके पर सहायताप्राप्त अशासकीय विद्यालयों को अग्नि परीक्षा देनी पड़ रही है। करीब छह हजार शिक्षकों और कर्मचारियों को तीन महीने से वेतन नहीं मिला है। सरकारी तंत्र की लापरवाही चौंकाने वाली है। जिम्मेदार विभागों शिक्षा और वित्त ने अलग-अलग तर्क दिए। यह कहते हुए वेतन रोक दिया कि प्रस्ताव में सृजित पदों का पूरा ब्योरा नहीं है। शिक्षक जगह-जगह गुहार लगा चुके हैं। शिक्षा मंत्री के दर पर दस्तक दी।
शिक्षक संगठन के प्रतिनिधियों ने लंबे अरसे से वेतन नहीं मिलने की पीड़ा बताई। इससे नाराज मंत्रीजी अपने अधिकारियों पर खूबे बिफरे। आनन-फानन में आपत्ति हटाकर भरोसा दिया कि तुरंत वेतन दिया जाएगा। एक महीना होने को है, वेतन की 115 करोड़ की धनराशि सचिवालय में फाइल में दबी हुई है। सचिवालय में कोरोना के डर से फाइल आगे नहीं बढ़ रही है। शिक्षक मजबूर हैं। कानों में फिर सुनाई देने लगा है, हमारी मांगें पूरी करो..।
सचिवालय में किसी भी वक्त बेधड़क दाखिल होने और अटके हुए काम कराने में निपुण शिक्षक संगठनों के पदाधिकारी अक्सर ये गुनगुनाते मिल जाते हैं कि शासन के खेल निराले है। काम होते-होते कब अटक जाए, शासन के गलियारों का यही तो पेशेवर अंदाज है। स्वत: सत्रांत लाभ लेने के लिए शिक्षकों के तमाम संगठन दिन-रात एक किए हुए हैं। अभी यह लाभ मध्य सत्र में सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों को मिल रहा है, लेकिन इसके लिए उन्हें छह महीने पहले आवेदन देकर मंजूरी लेनी होती है। मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री से लेकर शासन के आला अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकों में शिक्षकों के संगठन जोर लगा चुके हैं। शासन स्तर पर यह लाभ देने सहमति बनी। संबंधित शिक्षा अनुभाग ने फटाफट पत्रावली बनाई और इसे वित्त को भेज दिया। वित्त में अब तक कई बार यह प्रस्ताव भेजा जा चुका है।