उत्तराखंड में कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से ही दीप पर्व शुरू हो जाता है, जो कि कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी हरिबोधनी एकादशी तक चलता है। इस दिन देवताओं ने इस अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा की। इस कारण इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। जिसे ईगास-बग्वाल कहा जाता है।
दीपावली के ठीक ग्यारह दिन बाद गढ़वाल में एक और दीपावली मनाई जाती है जिसे इगास बग्वाल कहा जाता है। इस दिन पकवान बनाए जाते हैं, गोवंश को पींडा दिया जाता है, विशेष रूप से भैलो खेला जाता है।
गढ़वाल में चार बग्वाल होती है, पहली बग़्वाल कर्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। दूसरी अमावस्या को पूरे देश की तरह गढ़वाल में भी अपनी आंचलिक विशिष्टताओं के साथ मनाई जाती है। तीसरी बग्वाल बड़ी बग्वाल के ठीक 11 दिन बाद आने वाली, कर्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। गढ़वाली में एकादशी को इगास कहते हैं। इसलिए इसे इगास बग्वाल के नाम से जाना जाता है। यह गढ़वाल के जौनपुर, थौलधार, प्रतापनगर, रंवाई, चमियाला आदि क्षेत्रों में मनाई जाती है।
इसके बारे में कई लोकविश्वास, मान्यताएं, किंवदंतिया प्रचलित है। एक मान्यता के अनुसार गढ़वाल में भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना 11 दिन बाद मिली थी। इसलिए यहां पर ग्यारह दिन बाद यह दीवाली मनाई जाती है।
दूसरी मान्यता के अनुसार दिवाली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी।
आपको उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध त्योहार ईगास (बुढ दीवाली) की हार्दिक शुभकामनाएं..जानिए इसका महत्व
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